tag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post7897954641475588184..comments2024-01-14T22:05:12.224+05:30Comments on अनूप सेठी: समकालीन कविताPrakash Badalhttp://www.blogger.com/profile/04530642353450506019noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-18473774477063877692012-06-18T15:19:46.872+05:302012-06-18T15:19:46.872+05:30धन्यवाद अजेय जी,
टिप्पणी के लिए धन्यवाद. आपके ...धन्यवाद अजेय जी,<br /> टिप्पणी के लिए धन्यवाद. आपके उठाए सवालों पर हम आगे बात करते रहेंगे. <br /><br />कल नवभारत टाइम्स में छपे एक छोटे से इंटरव्यू में अरुण कमल की कविता के बारे में टिप्पणी है - 'मुझे कहने में संकोच नहीं कि हिंदी कविता, आरंभ से अब तक, दुनिया की श्रेष्ठ कविता की पंक्ति में बैठने के योग्य है. आज की कविता भी समकालीन विश्व कविता के बराबर है - हिंदी ही नहीं, पूरे भारत की, सभी भाषाओं की कविता.' <br /><br />कविता के बारे में यह विचार एवं दृष्टि बहुलता ही कविता और कविता आलोचना की शक्ति है.Anup sethihttps://www.blogger.com/profile/13784545311653629571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-4122384031038340922012-06-16T13:30:22.960+05:302012-06-16T13:30:22.960+05:30sulataan ahamad जी के लेख पर कुछ कहना था मुझे , ले...sulataan ahamad जी के लेख पर कुछ कहना था मुझे , लेकिन इस मे इतने ब्यौरे और इतना विस्तार है कि एक बार पढ़ कर कुछ खास कॉंसंट्रेट नही कर पाया .आप ने यह पोस्ट कुछ जल्दी बदल ली . फिर भी इसे दो तीन बार फिर से पढ़ कर कुछ कहूँगा .अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-5204672208626016752012-06-16T13:25:39.840+05:302012-06-16T13:25:39.840+05:30इतने सवाल खड़े कर दिए आप ने कि मेरे जेहन मे अभी एक...इतने सवाल खड़े कर दिए आप ने कि मेरे जेहन मे अभी एकदम एकाध के सिवा किसी सवाल का जवाब नही है. वह जवाब देने मे भी खुद अकेले को नाकाफी मानता हूँ . इन के जवाब तो समकालीन कविता की पूरी पीढ़ी को देना होगा और बहुत सोच समझ कर देना होगा . आप की इस प्रतिक्रिया से एक गलती, जो अब तक इस पूरे सीरीज़ मे हम कर रहे थे, समझ आई ; कि हम यह तय किए बगैर ही कि "कविता क्या है ", समकालीन कविता बहस करने बैठ गए. इसी लिए कुछ सार्थक बहस यहाँ नही बन पाई. <br />यह एक नई खिडकी मिली मुझे . अब इस खिड़की से इस पूरी बहस को ( अपनी बचकानी टिप्पणियो सहित ) फिर से देखूँगा / परखूँगा . यदि यह टिप्पणी मैने पहले देख पढ़ ली होती अपनी उक्त बचकानी टिप्पणियों से बाज़ आता . हाँ , मुझे बेहद खुशी हुई कि कविता के समकालीन शिल्प सौष्ठव और रूप पक्ष पर चर्चा की कमी मेरी तरह आप को भी खली . मुझे तो पूरी बहस इस पक्ष के अभाव मे एकाँगी लगती रही , और मैने एकाध जगह यह कहा भी है . विजेन्द्र जी इस पर ज़रूरी बात कर सकते थे . विजय कुमार जी भी . आप स्व्यम भी इस विषय पर कुछ अधिकारिक तिप्पणिया दे सकते थे . क्या मै भी एक प्रश्न पूछ सकता हूँ , कि क्या रूप पर बात करने मात्र से हम रूपवादी कहलाए जाएंगे ? और क्या रूप वादी कहलाना ( होना नही)कोई निन्दनीय अपराध है ?अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.com