tag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post5171482113107505677..comments2024-01-14T22:05:12.224+05:30Comments on अनूप सेठी: ढाई सौ रुपए का तेलPrakash Badalhttp://www.blogger.com/profile/04530642353450506019noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-32439809689058115582011-10-07T10:50:02.428+05:302011-10-07T10:50:02.428+05:30कुशल जी, व्यावहारिक ढंग से सोचेंगे तो आपकी बात ठी...कुशल जी, व्यावहारिक ढंग से सोचेंगे तो आपकी बात ठीक ही है. लेकिन अन्याय होते हुए देखने पर तकलीफ तो होती ही है.Anup sethihttps://www.blogger.com/profile/13784545311653629571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-81732935825974345192011-10-06T22:09:15.632+05:302011-10-06T22:09:15.632+05:30एक चुटकुला है एक आदमी दौड़ता हुआ आया और बोला ‘सरदा...एक चुटकुला है एक आदमी दौड़ता हुआ आया और बोला ‘सरदार जी, सरदार जी आग लगी।‘ सरदार ने कहा ‘मैंनु क्या? जवाब मैं उस आदमी ने कहा ‘आग आपके घर में लगी है।‘ सरदार ने पलट कर जवाब दिया। तो तैंनु क्या? कई बार सहायता करने पर ऐसी स्थिति भी हो जाती है। बहुत पुरानी बात है पालमपुर बस अड्डे पर दो-तीन ग्रामीण महिलाएं परेशान सी बसों को देख रही थीं मुझे लगा कि उनकी सहायता करना चाहिए इसलिए मैंने पूछा आपने कहां जाना है? उन्होंने जवाब दिया तैं क्या करना है असां कुत्थी भी जाणा होअे।(तूने क्या करना है हमने कहीं भी जाना हो) बैसे समाज सेवा और सहायता करने वालों की स्थिति घर के मौर्चे पर शराबी से भी बदतर होती है क्योंकि सब जानते हैं कि वह शराब पी कर आया है। परंतु समाज सेवक क्या बताए। वह क्या करके आया है। बताए तो गाली खाए। महिलाएं आलोचना को लेकर अतिसवेंदनशील होती हैं और समाज के कामों में बातें तो सुनना ही पड़ती हैं। वे भी लाचार होती हैं क्योंकि शराबी की पत्नी कह सकती है कि उसके पति ने अपने पैसों की पी है किसी को क्या तकलीफ है। अनूप जी, यदि आप तेल वाली महिला का साथ देते हुए कुछ कहते तो ड्राईवर को तकलीफ होती। इसीलिए चुप रहना ही ठीक होता है।कुशलकुमारhttps://www.blogger.com/profile/05839935127665322734noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-39023772244617392842011-10-05T13:59:33.179+05:302011-10-05T13:59:33.179+05:30धन्यवाद, अनूप जी.
टमाटर बिखरनेवाली कविता यदि आपने...धन्यवाद, अनूप जी.<br /><br />टमाटर बिखरनेवाली कविता यदि आपने ब्लौग पर डाली है तो उसका लिंक उपलब्ध करा दें.निशांत मिश्र - Nishant Mishrahttps://www.blogger.com/profile/08126146331802512127noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-35312596340278481702011-10-05T10:29:10.448+05:302011-10-05T10:29:10.448+05:30निशांत और विवेक जी, टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद....निशांत और विवेक जी, टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद. आप दोनों ही ठीक कह रहे हैं. जीवन की स्थितियां ही कुछ ऐसी हो गई हैं कि हरेक जन अपने तक सीमित रहने को मजबूर हो जाता है. लेकिन हमें आदर्श स्थिति के बारे में सोचते तो रहना होगा, वरना भूल ही जाएंगे कि दूसरे की तकलीफ क्या होती है और मनुष्य दूसरे की मदद कर सकता है. <br /><br />निशांत जी जैसे आपका तेल बिखरा, वैसे ही एक बार मेरे टमाटर बिखर गए थे, सड़क पर. मैंने बाद में उस वाकये पर एक कविता भी लिखी है. <br /><br />भाई अनूप शुक्ल जी, आपने मेरे ब्लाग की चर्चा की, मैं बेहद शुक्रगुजार हूं आपका. आपने लेख लिखने में बड़ी मेहनत की है. तकरीबन सारा ब्लॉग ही खंगाल डाला है. ऊपर से हर बार ताला तोड़ने की जहमत! असल में ब्लॉगिंग थोड़ी और परिपक्व हो जाए तो ताले की जरूरत खत्म हो जाएगी. प्रिंट और इंटरनेट दोनों माध्यम एक दूसरे की इज्जत करना सीख जाएं बस. मान्यता देंगे तो इज्जत भी करेंगे. <br /><br />गऊ चिंतन का आपका आदेश शिरोधार्य है. कोशिश करूंगा कि आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरूं. <br /><br />मुझे आप सबको यह बताते हुए भी खुशी हो रही है कि मेंरे ब्लॉग की पोस्टों का शतक जल्दी ही पूरा होने वाला है. अब तक बहुत नियमित नहीं लिख पाया हूं पर अब उत्साह जाग रहा है. <br /><br />आभारAnup sethihttps://www.blogger.com/profile/13784545311653629571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-43099309844529803322011-10-05T07:39:10.234+05:302011-10-05T07:39:10.234+05:30जिसका नुकसान होता है उसकी कीमत उसके लिये कितनी है ...जिसका नुकसान होता है उसकी कीमत उसके लिये कितनी है केवल उसे ही पता होता है। और बात रही मानवीय भावनाओं की तो आजकल माहौल यह है कि अगर आप मदद कर भी दें तो दुनिया शंकालू निगाहों से देखती है।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-66189796381639807752011-10-04T11:33:48.386+05:302011-10-04T11:33:48.386+05:30आपकी डायरियां और पुरानी पोस्टें लगातार बांचते रहते...आपकी डायरियां और पुरानी पोस्टें लगातार बांचते रहते हैं। मुझे आपका वागर्थ में हिंदी ब्लागिंग के बारे में लिखा लेख हिंदी ब्लागिंग के बारे में लिखे लेखों में सबसे प्यारा लेख लगता है।<br /><br />आप अपने ब्लाग में ये ताला क्यों लगाये हैं। कापी करने में बारह बज गये। <br /><br />आप जुगाली उर्फ़ गऊ चिंतन घराने की और पोस्टें लिखिये न।<br /><br />आपके ब्लाग के बारे में चर्चा देखिये- <a href="http://chitthacharcha.co.in/2011/10/ghis-ghis-kar-pati-patnee-bhee-sil-batta-ho-jaate-hain/" rel="nofollow">घिस घिस कर पति पत्नी भी सिल बत्ता हो जाते हैं</a> :)अनूप शुक्लhttp://hindini.com/fursatiyanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-23600424612439614332011-10-04T11:25:55.049+05:302011-10-04T11:25:55.049+05:30अलग-थलग रहने की प्रवृत्ति बेवजह नहीं है. दिल्ली मे...अलग-थलग रहने की प्रवृत्ति बेवजह नहीं है. दिल्ली में कई बार दूसरों के 'पचड़े' में पड़ने के कारण गालियाँ खा चुका हूँ. अब तो पत्नी ने कसम भी दिला दी है कि मैं अपने काम से काम रखूँ.<br /><br />अब तो मैं किसी को कुछ नहीं बोल पाता. लोग भरपूर जगह होने के बाद भी मेरी गाडी पार्किंग में फंसा देते हैं. मैं चुप रहता हूँ.<br /><br />पार्किंग वाले मुझसे दो घंटे की बजाय आठ घंटे का किराया मांगते हैं. मैं चुप रहता हूँ.<br /><br />तेल से जुदा एक और वाकया है, कुछ मजाकिया. कुछ दिन पहले कैंटीन से दो लीटर का तेल का डब्बा खरीदा. बेसमेंट में लिफ्ट के सामने उसे लिए खड़ा था कि अचानक डब्बे का हैंडल मेरे हाथ में रह गया और डब्बा नीचे गिरकर पूरे लैंडिंग एरिया में गोलाकार घूम गया. पूरा दो लीटर तेल शानदार डिजाइन बनाते हुए वहां फैला हुआ था. उसे बर्बाद हुआ देख मुझे अफ़सोस क्या होना था, मैं तो वहां से भगा, कहीं कोई यह न बोल दे कि इसे साफ़ करने की ज़िम्मेदारी भी मेरी है. इत्तेफाक से वहां उस वक़्त कोई नहीं था. अब वह बात याद करते ही बेतरह हंसी आती है.Nishanthttp://hindizen.comnoreply@blogger.com