tag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post4356661317208522908..comments2024-01-14T22:05:12.224+05:30Comments on अनूप सेठी: यादों की फिल्म के कुछ दृश्य Prakash Badalhttp://www.blogger.com/profile/04530642353450506019noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-62046950749077837192013-01-24T12:59:51.135+05:302013-01-24T12:59:51.135+05:30प्रकाश भाई, धन्यवाद. मीटर की चिंता क्या करनी. जो...प्रकाश भाई, धन्यवाद. मीटर की चिंता क्या करनी. जो अच्छा लगता है वो लिखते रहिए Anup sethihttps://www.blogger.com/profile/13784545311653629571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-52234909700641156512013-01-24T11:36:02.335+05:302013-01-24T11:36:02.335+05:30जुब्बल से शिमला आते थे, पिता जी के साथ, छैला में ब...जुब्बल से शिमला आते थे, पिता जी के साथ, छैला में बस रुकती थी रोटी चाय के लिए, पिता जी कई बार बाहर निकलते, बीड़ी पीने के लिए! (वैसे उन दिनों तो बसों के अन्दर भी बीड़ी पीने का रिवाज़ था, आपकी तबीयत बिगड़े तो बीड़ी पीने वालों की बला से। लेकिन बसों मे लिखा रहता था, 'बस के अन्दर बीड़ी सिगरेट पीना सख़्त मना है'।) फिर अचानक कंडक्टर सीटी बजाता, पिता जी न बस के अन्दर नज़र आते न बाहर कहीं, फिर अपने दिल की धड़कन ऐसी सुनाई देती जैसे भीतर से बाहर की ओर कोई मुक्के मार रहा हो। अचानक चलती बस में पिता जी लटकते नज़र आते तो चैन आता,और मन ही मन मैं यह कहता, शुक्र है! अनाथ होने से बच गया। शिमला में रात को पिता जी के साथ मिडल बाज़ार में ओके ढाबा में सो जाता था बिल्कुल चिपक कर, लेकिन अब पिता जी के कमरे में नहीं जाता, बीड़ी की बास आती है। आपके लेख ने मेरे भीतर बहुत खलल पैता किया, लेकिन मुझे लिखना नहीं आता न, और जो मैं लिखता हूँ उसके पीछे लोग मीटर लिए घूमते है! बहरहाल मज़ा आ गया।Prakash Badalhttps://www.blogger.com/profile/04530642353450506019noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-69956345682075258112013-01-19T11:15:15.788+05:302013-01-19T11:15:15.788+05:30बचपन ही से मेरे भीतर
खिलतीं थीं कॊम्पलें
तुम्हारे ...बचपन ही से मेरे भीतर<br />खिलतीं थीं कॊम्पलें<br />तुम्हारे लिये.<br />उगते देखता क्षितिजों में लाल रंग.<br /><br />मैं देखता ’मैं’ को<br />तुम्हारे भीतर.<br />तुम्हें नहीं है याद<br />बचपन में तुम <br />निकल पड़ते थे बहुधा<br /> मेरे किले वाले स्कूल<br />मेरे बस्ते को घसीट कर<br /><br />तुम हो भी तो वही<br />मेरे वक्ष की ऊष्मा<br />मेरे मन की घड़न,<br />और चढ़ने दिये उस पर<br />उगते बाल थाल के लाल रंग.<br /><br />तुम केवल तुम ही हो<br />मेरे बाजु मेरे हाथ, मेरी कलम, <br />मेरे नि:शब्द सुषुप्त उदधि को<br />तुमने ही दिये शब्द, ताल, तरंग.<br />रब्ब करे अब भी,जब भी,<br />बरसती रहे उत्छाह के रस की झड़ी.<br />घड़ता रहूं हर घड़ी, तुम्हारी छवि,<br />और सजाता रहूं<br />प्रवाल के उत्ताल रंग.<br />Tej Kumarhttps://www.blogger.com/profile/15550336536930330461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-48673033348135034782013-01-19T08:29:13.581+05:302013-01-19T08:29:13.581+05:30फिर से पढ़ कर भी ताजगी का एहसास हुआ और अपने बचपन क...फिर से पढ़ कर भी ताजगी का एहसास हुआ और अपने बचपन की याद हो आई । जिसके भी भीतर यह फिल्म चलती है जान लीजिये उसके भीतर का बच्चा ज़िंदा है । उसका ज़िंदा रहना मनुष्यता का ज़िंदा रहना है , रचनात्मकता का ज़िंदा रहना है । बहुत अच्छा लगा । पिछले दिनों कुल्लू कॉलेज में उरसेम लता ने हिन्दी दिवस पर बड़ों की प्रतियोगिता कराई थी पाँचवीं कक्षा तक की यादों को कलमबद्ध करने की । मैं तो प्रतियोगिता से डरता हूँ इसलिए बाद में अपना संस्मरण दिया पर उनके पास बहुत से लोगों के रोचक संस्मरण इकट्ठा हुए । बचपन में कौन नहीं लौट जाना चाहता । आप का यह संस्मरण भी उन्हे ज़रूर दूंगा । niranjan dev sharmahttps://www.blogger.com/profile/16979796165735784643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-78635525749191537222013-01-18T22:46:22.108+05:302013-01-18T22:46:22.108+05:30This comment has been removed by the author.Tej Kumarhttps://www.blogger.com/profile/15550336536930330461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-35158337382483801442013-01-18T14:20:14.407+05:302013-01-18T14:20:14.407+05:30अगर आप भी अपने अनुभव लिखें तो उस जादुई समय को पंख ...अगर आप भी अपने अनुभव लिखें तो उस जादुई समय को पंख लग जाएंगे. Anup sethihttps://www.blogger.com/profile/13784545311653629571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-46400998495718188552013-01-18T14:10:16.962+05:302013-01-18T14:10:16.962+05:30सदैव स्वागत है आपका श्रीमान।सदैव स्वागत है आपका श्रीमान।Harihar (विकेश कुमार बडोला) https://www.blogger.com/profile/02638624508885690777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-89060164455785919492013-01-18T13:23:16.131+05:302013-01-18T13:23:16.131+05:30अहा! के इन पांचो फिल्म शॉर्टों में चार तो मानो मे...अहा! के इन पांचो फिल्म शॉर्टों में चार तो मानो मेरी आन्खों के अन्दरूनी हिस्से में इतने गाढ़े चिपके हुये हैं कि इन्हें पढ़ते ही फिल्म चालू हो गई और सभी दृश्य बारी-बारी उभर कर सामने आते चले गये और उन से जुड़े रंगों, गन्धों, वर्फीली-सजीली हवाओं के अहसास भी तरो ताज़ा हो गये. तुम्हारी प्रथम कविता की रचना के साथ गर्म तपा हुआ तन्दूर और उस के ऊपर रक्खी चाये की केतली का पानी का दृश्य, वर्फ के आगार के बीचों बीच खुदा हुआ गहरा तंग रास्ता..और अन्यान्य अनेक तस्वीरें. स्कूल का स्केटिन्ग ग्रौन्ड, चश्में का अती ठण्डा पानी. शीशे की तरह जमें हुये पानी पर तख्तियों पर बैठ कर खिस्कने की मौज. एक वार सड़क सडक बहुत दूर निकल गये हम दोनों.. नाले के पार से किसी शरारती लाहौली लड़के ने पत्थर दे मारा जो मेरे सिर पर लगा था. द्रुत वेग से वहते नाले की साईडों में शीशे की पैनी तलवारें और हम जिग्यासा वश नीचे उतर गये थे..कुछ भी हो सकता था. पर भोलापन भी इतना के किसी चीज़ की परवाह ही नहीं थी. लाल बहादुर शास्त्री के निधन पर स्कूल की प्रात: काल की प्रार्थना सभा में हमारे एक अध्यापक जो शास्त्री थे, बर सुनाते सुनाते रो पड़े थे, भी सपष्ट याद है- Tej Kumarhttps://www.blogger.com/profile/15550336536930330461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-1696712889458201382013-01-18T10:48:22.038+05:302013-01-18T10:48:22.038+05:30हां. और अगर बच्चे यह अधीरता न दिखाएं तो बड़े बूढ़...हां. और अगर बच्चे यह अधीरता न दिखाएं तो बड़े बूढ़े और अधिक बूढ़े हो जाएंगे. यहां आने और टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद विकेश जी Anup sethihttps://www.blogger.com/profile/13784545311653629571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-62833881550305078832013-01-18T10:44:36.794+05:302013-01-18T10:44:36.794+05:30अगर हम भी बच्चे हो जाएं तो कितना मजा आए ! आपकी एक...अगर हम भी बच्चे हो जाएं तो कितना मजा आए ! आपकी एक यात्रा में भी बच्चे नितांत बच्चे थे जिसमें बेटी लहरें गिनती है Anup sethihttps://www.blogger.com/profile/13784545311653629571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-80972722646365475132013-01-18T10:40:07.137+05:302013-01-18T10:40:07.137+05:30धन्यवाद . आप हमेशा प्रेरित करते रहते हैं, अच्छा ...धन्यवाद . आप हमेशा प्रेरित करते रहते हैं, अच्छा लगता है. Anup sethihttps://www.blogger.com/profile/13784545311653629571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-66090732042018859152013-01-17T21:37:41.703+05:302013-01-17T21:37:41.703+05:30बच्चों की ऐसी अधीरता ही तो उन्हें प्यारा बनाती ...बच्चों की ऐसी अधीरता ही तो उन्हें प्यारा बनाती है।Harihar (विकेश कुमार बडोला) https://www.blogger.com/profile/02638624508885690777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-971249985616442652013-01-17T19:29:47.675+05:302013-01-17T19:29:47.675+05:30यात्रा के समय बच्चों को ही सर्वाधिक चिन्ता रहती है...यात्रा के समय बच्चों को ही सर्वाधिक चिन्ता रहती है कि कोई छूट न जाये..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-68971496463730616842013-01-17T18:55:23.001+05:302013-01-17T18:55:23.001+05:30बहुत खूब .आप से सुन चुका हूँ . लिखा हुआ और भी रोमा...बहुत खूब .आप से सुन चुका हूँ . लिखा हुआ और भी रोमाँचक है . आगे चलिए . मज़ा आ रहा है .. अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.com