tag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post356956889618349644..comments2024-01-14T22:05:12.224+05:30Comments on अनूप सेठी: ब्लेड की धार परPrakash Badalhttp://www.blogger.com/profile/04530642353450506019noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-50392494311417306692014-02-25T23:12:51.222+05:302014-02-25T23:12:51.222+05:30प्रवीण जी, आपकी टिप्पणी बेहद संक्षिप्त लेकिन सटी...प्रवीण जी, आपकी टिप्पणी बेहद संक्षिप्त लेकिन सटीक होती है। हां यह परिकल्पना ही है शायद। रोचक भी। और सत्य यानी यथार्थ। साथ ही इसमें उलझन, वेदना और हताशा भी है शायद। Anup sethihttps://www.blogger.com/profile/13784545311653629571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-13700005252054649972014-02-25T23:06:55.000+05:302014-02-25T23:06:55.000+05:30मोहिंदर जी, आप ठीक कह रहे हैं। ज्यादा से ज्यादा ...मोहिंदर जी, आप ठीक कह रहे हैं। ज्यादा से ज्यादा लोगों के मन में इस तरह के चलचित्र ज्यादा से ज्यादा चलें तो शायद पुरुष के बैल से मनुष्य बनने की प्रक्रिया भी तेज हो और वह स्त्री को महज मादा के बजाय व्यक्ति मानना शुरू करे। Anup sethihttps://www.blogger.com/profile/13784545311653629571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-38029870503224491802014-02-25T20:28:32.734+05:302014-02-25T20:28:32.734+05:30रोचक परिकल्पना, पलट सत्यरोचक परिकल्पना, पलट सत्यप्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7041590032214456719.post-31828812567306055742014-02-24T12:09:17.221+05:302014-02-24T12:09:17.221+05:30अनूप जी बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....कुछ इसी तरह के चल...अनूप जी बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....कुछ इसी तरह के चलचित्र तकरीवन सभी की आँखोँ के सामने चतते है जब घर से दफ्तर या दफ्तर से घर की और गाडी ड्राईव कर रहे होते हैँ.Mohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com