Saturday, February 2, 2019

तिब्बत अपनी आंखों से



तिब्‍बती कवि लासंग शेरिंग  से कुछ साल पहले धर्मशाला मैक्‍लोडगंज में भेंट हुई थी। तिब्‍बत की आजादी के लिए संघर्ष करने वाला कवि मैक्‍लोडगंज में बुुक वर्म नाम की किताबों की दुकान चला कर अपना जीवन चलाता है और अपने मुल्‍क की आजादी के ख्‍वाब देखता है। लासंग की चार कविताएं यहां बारी बारी से दी जा रही हैं। ये चार कविताएं कवि ने बुक मार्क की तरह छाप रखी थीं जो उसकी किताबों की दुकान पर पाठक ग्राहकों को सहज ही उपलब्‍ध थीं। ये कविताएं उनके टुमारो एंड अदर पोइम्‍स संग्रह में हैं। इनमें से सबसे पहले आपने पढ़ी भस्‍म होता बांस का पर्दा। उसके बाद जब दर्द ही सुख हो और फिर युद्ध और शांति। अब पढ़िए यह कविता- 

तिब्‍बत अपनी आंखों से
मैं देखूं तिब्‍बत का स्‍वच्‍छ शफ्फाक आकाश
उसकी ऊंची बर्फ लदी चोटियां
हरी भरी पहाड़ियां और वादियां
पर देखूं सिर्फ बंद आंखों से

मैं देखूं अपनी प्‍यारी न्‍यारी मादरे जमीन को
मैं देखूं वो घर जहां मैं पैदा हुआ
मैं देखूं अपने बचपन के दोस्‍त सारे
पर देखूं सिर्फ बंद आंखों से

मैं लौट रहा आजाद तिब्‍बत को
मैं पहुंचा अपने पुराने घर के कस्‍बे में
मैं जा मिला अपने कुनबे से
पर देखूं सिर्फ बंद आंखों से

ऐसा क्‍यूं है कि
यह सिर्फ मेरे सपनों में है
सिर्फ बंद आंखों से ही
देखूं तिब्‍बत मैं

पर ऐसा क्‍यों है कि
मेरी जिंदगी में अच्‍छी बातें
होती हैं सिर्फ
मेरे सपनों में

क्‍या जागूंगा मैं एक सुबह
पाउंगा खुद को तिब्‍बत में
और सच में होगा यह
कि नहीं देख रहा होउंगा सपना मैं
हां क्‍या कभी लौटूंगा मैं
आजाद तिब्‍बत में ?
और देखूंगा कभी
तिब्‍बत को अपनी आंखों से