Thursday, December 20, 2018

भस्म होता बांस का पर्दा



तिब्‍बती कवि लासंग शेरिंग से कुछ साल पहले धर्मशाला मैैक्‍लोडगंज में भेंट हुई थी। तिब्‍बत की आजादी के लिए संघर्ष करने वाला कवि मैक्‍लोडगंज में बुुक वर्म नाम की किताबों की दुकान चला कर अपना जीवन चलाता हैै और अपने मुल्‍क की आजादी के ख्‍वाब देखता है। लासंग की चार कविताएं यहांं बारी बारी से दी जा रही हैैं। ये चार कविताएं कवि ने बुक मार्क की तरह छाप रखी थीं जो उसकी किताबों की दुकान पर पाठक ग्राहकों को सहज ही उपलब्‍ध थीं। इनमें से सबसे पहले पढ़िए यह कविता- 

भस्‍म होता बांस का पर्दा
हमने बर्लिन की दीवार को ढहते देखा है
इसके साथ आजादी का घड़ियाल बजते देखा है
क्‍यों, फिर क्‍यों हम करें यकीन
बनी रहेंगी जेल की दीवारें
हमेशा हमेशा के लिए

हमने लोहे के पर्दे का ध्‍वंस होते देखा है
इसके साथ पुराने मुल्‍कों को आजादी में उगते देखा है
क्‍यों, फिर क्‍यों हम करें यकीन
बना रहेगा बांस का पर्दा
हमेशा हमेशा के लिए

हम जानते हैं हमारे बहादुरों ने हराया था
कभी मध्‍य युग की राजशाहियों को
क्‍यों, फिर क्‍यों हम करें यकीन
यह स्‍वघोषित 'मातृभूमि' बनी रहेगी
हमेशा हमेशा के लिए

हमें खबर है सारे मानव इतिहास में
बादशाहियां आती हैं जाती हैं
साम्राज्‍य बनते हैं फिर गिरते हैं
कोई बादशाही न बादशाह बचता है
हमेशा हमेशा के लिए

हमने देखा है अपनी ही जिंदगी में
उखाड़ सकते हैं तानाशाहों को
हरा सकते हैं मगरूर शाहों को
दमन चल नहीं सकता
हमेशा हमेशा के लिए

मैं देखता हूं जेल की दीवारें ढह रही हैं
मैं देखता हूं हमारा दमन खत्‍म होने को है
मैं देखता हूं खत्‍म होती है जलावतनी
मैं दखता हूं बांस का पर्दा भस्‍म हो रहा है
हमेशा हमेशा के लिए

आओ मेरे तिब्‍बती भाइयो न रहें हम बैठे न इंतजार करते
आओ मेरे तिब्‍बती भाइयो हौंसला न छूटे
आओ मेरे तिब्‍बती भाइयो मिल कर उठ खड़े हों
चलो चलें आजादी के लिए - हम हो सकते हैं आजाद
                  आओ लड़ें आजादी के लिए - हो के रहेगा तिब्‍बत आजाद




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