Sunday, October 4, 2015

जुगाली उर्फ गऊ चिंतन

जीते जी मरण




मेरा भेजा फिर गएला है मेरे बाप। मेरे कू किधर का नईं छोड़ा ए लोग। मयैं बौह्त अकेली रह गई रे। मेरी पुच्‍छल पकड़ के सुर्ग जाने की बात करते, पन मयैं किधर जाऊं ? दिल्‍ली के पछुआड़े के एक गांव में मेरे ऊपर ऐसा जुर्म कर डाला! मेरा नाम ले के एक भला माणुस मार डाला। कौन दरिंदा किया एह्?  है कोई बोलने वाला? है कोई मुंह खोलने वाला?  कि खाली पीली मजमा ई देखने का है? मैं तो बोलती तुम सब जन हत्‍यारे है। बोलती है मयै, सब लोग। जो हत्‍या कर के भाग गए, वो भी और जो देख के चुप बैठे, वो भी। कनून की रखवाली करने वाले भी और कनून को तोड़ने वाले भी। अपना बनाया कनून तो तोड़ा ई, इन्‍सानियत के कनून का भी तुम लोग धज्‍जी उड़ा दिया। मेरा मुंह काला कर दिया रे तुम लोग। चले जाओ सब लोग इदर से। मेरे कू अकेला छोड़ दो। मेरे कू रोने दो रे। काए को मयै गऊ माता बन के पैदा हुई रे। काय कू।      

7 comments:

  1. अभी कुछ दिनों बाद बकरी फिर मुर्गा भी इसी तरह के विलाप करेंगे इंतजार कीजिये अच्छे दिन आ गये हैं बस पहुँचने वाले हैं ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी जोशीजी आप शायद ठीक कह रहे हैं। जब बस नहीं चलता तो ऐसा ही होता है। जब अति होने लगती है तो सभी प्राणी और प्रकृति रोने लग जाती है।

      Delete
  2. ठीक बोली रे . मजमा बना दियेले रे. कनून के रखवाले जन हत्यारे बन गयेले..सबी इंसानियत का कनून का चीथडा कर डाला मानूस लोग. काहे की गऊ माता बनी रे. मुन्ह काला करीयेल..

    बहुत धान्सू जुगाली करीयेला..

    ReplyDelete
    Replies
    1. और नहीं तो क्‍या ....

      Delete
  3. बढ़िया आलेख । गऊ की जुबानी आपने गऊ के प्रति हमारे विचारों और व्यवहार में पाये जाने वाले विरोधाभास पर अपनी सशक्त लेखनी से खूब तंज़ किया है। साधुवाद !

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्‍यवाद। पर यह सब देखकर तकलीफ बहुत होती है।

      Delete
    2. मैं धर्म और राजनीति की मित्रता को "चील और चीते की दोस्ती"कहता हूँ ....यह दोस्ती आम आदमी को हलाल करके नोचती हे खाती हे.......और अगर हमारे देश में केन्द्रीय सरकार की छत्र-छाया में पलने वाले इस कट्टरवाद को न रोका गया तो यह पुरे देश को ही ले डूबेगा....ध्यान रहे.

      Delete