Tuesday, July 13, 2010

नालेज वालेज

मेरी पिराबलम बोले तो मालूम क्या है? मैंने इतना कागज खा ले लिया है न कि मेरे को नॉलेज बहोत हो गएला है। जो कागज मैं खाती है न, वो कोरा नई होता है। कोरा कागज तो पैसा दे के मिलता है। जो कागज छपेला होता है वो ई च रद्दी में बिकता है। उसमें नॉलेज की बात रहता है पन रद्दी में जाता है। मेरे को जादातर वो ई कागज मिलता है खाने को। और छपेला कागज दिमाग में जमा होता है रे। बोले तो कागज तो पेट में जाता है, गू बनने को। पन उसका छपेला अक्षर का दिमाग में दही बन जाता है। जब ये दही जादा हो जाता है न तो मेरा मुसीबत!! बाप रे बाप!!! तबी मेरे को कुछ लेक्चर देना ही मांगता। नहीं बोलेगी तो बिमार पड़ जाएगी। अभी सड़क पर बिमार गाई पड़ी रहेगी तो अच्छा लगेगा क्या? सारा ट्रैफिक रुक जाएंगा। लोग मजाक बनाएंगा। इस वास्‍ते, शहर की इज्जत के वास्ते मैं बिमार नहीं पड़ती। खड़ी रहती है अक्खा टाइम।

1 comment:

  1. क्या बात है…मज़ा आ गया…य 'दही' बहुत तंग करती है भाई

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