Thursday, June 17, 2010

बारिश का स्‍वागत




सिर पर धर लो तन भीग न पाता

हो जब धूप कड़ी तब छाया दे जाता

छरहरी छड़ी बने डर पास न आता

क्‍यों सखी साजन न सखी छाता


रेखांकन सुमनिका का और पंक्तियां अमीर खुसरो की याद में


6 comments:

  1. वाह...आनंद की वर्षा हो गयी...पढ़ कर...
    नीरज

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  2. धन्‍यवाद मित्रो, इन पंक्तियों को पसंद करने के लिए. पर कहीं कुछ खम बाकी है. इन्‍हें बार बार पढ़ा, सुधारा, उसके बाद ही यहां टांका, पर अभी भी वो मजा नहीं आ रहा. अगर कोई इसे दुबारा लिखने की कोशिश करे तो कितना मजा आए!

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  3. भाई साहब
    बहुत खूब

    एक कोशिश की है.

    "छरहरा छड़ डर पास न आता
    ओढ़ो तो तन भीग न पाता
    धूप में छाया भी दे जाता
    क्यों सखी साजन? न सखी छाता"

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  4. zinda chitra.


    dwij bhai, main gustakhi karoon?

    sar dhar lo tan bheeg n pata
    kadee dhoop me chhanh de jata
    chadee bane dar pas n aata
    kyon sakhi sajan, n sakhi chhata.

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  5. Girdhar ki kundliyon ki yaad aa gayi. sunder prayas.

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  6. धन्‍यवाद, आर के आप पधारे.

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