Friday, January 29, 2010

हिमालय में हैंड ग्लाइडिंग, नहीं पहाड़ में हिचकोले खाती जिंदगानी हरदम



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पहाड़ियां और झाड़ियां

(कांगड़ा के मसरूर में प्रचीन शैल-खनित मंदिर का इलाका)


हम ऐसी जगह पर उतर आए

जहां चोटियों पर चढ़कर

घाटियों में उतर कर

जाना होता था बस्तियों में


जहां सरकार को सड़क बनाना तो आसान था

लोगों को पानी की सीर ढूंढना मुश्किल

किसान बीज बोते थे और आसमान ताकते थे

सारी हरियाली कोमलता और मौज मस्ती

कांगड़ा चित्रकला में छूट गई थी

यहां काल से पहले का एक मंदिर था टूटा हुआ

यूं दिवाले शिवाले हर कोने में थे

दिल दिमाग पर जड़े तालों की तरह


एक कवि चाहता था हल जोतने के बाद

फुर्सत मिले तो ताली खोजे

पर हर बार ठरकियों की सभा में

तालियों में गर्क होता था


पहाड़ी सैरगाह की नाक के नीचे

बाहर बस्तियां

भीतर उजाड़ ज्यादा था

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर! ठियोग के बाद फिर एक और कविता!
    पता नहि मुझे तो ऐसी ही कविताएं ज़्यादा प्रभावित करती है.प्रिंट में कहीं छपी है क्या?

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  2. Jab yahaan aaye the tum, tab se kya kya liye ghoom rahe ho Mumbai jakar bhi...
    Tree house me apni plate saaf karne ke baad us wakt meri plate bhi utha kar saaf kar gaye the jab maa beti ke sath baaton me gum the. aaj bata raha hoon. kabhi hisaab barabar karoonga.
    Jise Lokshilp kah rahe ho wo parlokshilp hai mere yaar. miloge fir se toh batayenge ki...
    Yoon hi nahin rach-bas gayi hai wo duniya tum me... jo is duniya ko mil bhi jaye toh kya hai!
    Aur mujhe kab bataoge ki mai kaise Devnagari me tumhen pukaarun? kuchh karo. Ajey kahta hai ki Ashesh ko Anup theek kar dega... karo na!

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  3. हां अजय जी, जनवरी के समावर्तन में छपी हैं.
    कविताएं पसंद आईं, धन्‍यवाद.

    अशेष जी, बहुत साल पहले कुल्‍लू में ही एक सज्‍जन ने स‍िखाया था कि जो खाना जानता है उसे बनाना भी आना चाहिए. अपनी थाली धोना उसी सबक का हिससा है. और फिर अपनी और अपनों की थाली में क्‍या फर्क.
    मैं आपको क्‍या ठीक करुंगा, उल्‍टे डर है कहीं आप ही मुझे ठीक न कर डालो.

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  4. भाई, ठीक होने से डरा नही करते.दरअसल ऊपर वाला हमे ठीक से बना नही पाया..... और हमारी फितरत देख के लगा होगा उसे कि ये लोग आपस मे ही एक दूसरे को ठीक कर लेंगे. तभी यह मुहूर्त देख कर उस ने हम तीनो को एक ही काल मे नीचे भेज दिया. थ्री ईडियट्स! जो उस के पास पहुँचने से पहले एक दूसरे को ठीक ठाक कर देंगे....

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  5. ये ठीका-ठाकी का क्‍या मामला है भाई लोग? कहीं आप लोगों को ठोका-ठाकी की जरूरत तो नहीं?

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  6. Ab theek hai. Ham teeno ke alaawa jo samajh jaaye wo Ashesh ke paas sada ke liye chala aaye aur pachhtaaye.

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