Friday, July 17, 2009

उदय प्रकाश के लिए







कवि की दुनिया

दुनिया में कवि से ज्यादा उजड्ड कोई नहीं
कवि से ज्यादा सभ्य कोई नहीं
तमाम दुनिया पानी भरती है कवि के आगे
इशारों पर नचाता फिरता है दिन रात
दुनिया की ऐसी तैसी करता रहता है कवि
दुनिया अपनी दुनिया में मगन हो दूसरी किसी दुनिया में निकल जाती
कवि एक एक डग से नापता एक एक लोक
कवि दुनिया की दुनिया और दूसरी अनेकानेक दुनियाओं में विचरता
अपनी एक दुनिया रच डालता रोज रोज
कोई देखे कवि की दुनिया से
कैसी दिखती है मेरी तुम्हारी दुनिया ª

यह कविता सन 2001 में लिखी थी और पिछले साल वागर्थ में छपी थी.

6 comments:

  1. उदय प्रकाश कवि नही रहे, कथाकार हो गये हैं. और चिट्ठाकार. एक नई कविता लिख दीजिए.

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  2. ab to ve ek hatyare yogi ki chilam bhar rahe hain

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  3. अनूपजी कवियों कि सटीक और सुंदर परिभाषा के लिए धन्यवाद . बहुत ही सटीक. दिल को छु लेने वाली . सही मायने में कवियों के चरित्र को उजागर करने वाली कविता . कम -से -कम मुझे तो ऐसा ही महसूस हुआ

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  4. प्रिय अजेय, जिद्दी धुन और संवाद प्रिय बंधु,
    यह कविता तो प्रसंगत: उदय जी पर है. वैसे कोई कवि इससे अछूता नहीं है. मेरे ख्‍याल से किसी के किए को सामने रखकर पंची तो डाली जा सकती है, जो या तो सत्‍त निचोड़ के हथेली पे धर दे या छीछालेदर कर दे, पर कविता? कविता इतनी आसानी से नहीं लिखी जा सकती. पालियों को जोड़ घटा के करतब करना हो तो अलग बात है.

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  5. चित्र कार्तिकेय की मूर्ति का जान पड़ता है. सुंदर कलाकृति.

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  6. राहुल जी, यहां पधारने और टिप्‍पणी करने के लिए आभार.
    शायद.
    मोर तो दिख रहा है.
    यह मूर्ति हिमाचल के कांगड़ा जिले के मसरूर में शैल खनित हिंदू मंदिरों के समूह में है.

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