Monday, November 24, 2008

कविता

राम शिला की प्रार्थना
(एक कांगड़ी लोकगाथा, जिसमें बहू को दीवार में चिनवा कर
बलि देने का करुण वर्णन है, की शैली में)


अगल भी चिनना बगल भी चिनना
उस माँ को लेना संभाल
जिसका लाल कटा दंगे में


अगल भी चिनना बगल भी चिनना
उस बहू का करना ख्याल
जिसका कंत मरा दंगे में


अगल भी चिनना बगल भी चिनना
उस बाल को लेना पाल
जिसकी माँ न बाप बचा दंगे में


अगल भी चिनना बगल भी चिनना
नहीं मन साफ तो कुछ नहीं माफ
चाहे जितने मंदिर लो चिनवा।

रचनाकालः2002 और दैनिक जागरण में प्रकाशित 2008

1 comment:

  1. हिमाचल प्रदेश के जोगिन्दर नगर से हूं। बचपन से ही करनैल राणा के गाने सुने थे। उनमें एक इसी कहानी पर था।
    धन्यवाद, आपने इस तरह की प्रस्तुति कर वाकई खोती हुई संस्कृति को बचाने में अपना योगदान दिया है।
    सेटिंग्स में जाकर वर्ड वेरिफिरेशन हटा दें।

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